Govardhan Puja 2020: जानें कब है गोवर्धन पूजा और क्या है शुभ मुहूर्त ?

नई दिल्ली: धनतेरस और दिवाली के साथ-साथ देशभर में गोवर्धन पूजा की तैयारी जोरों पर है। दिवाली के ठीक अगले दिन गोवर्धन पूजा करने का विधान है। कार्तिक माह की प्रतिपदा को मनाये जाने पर्व को गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है।
मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों इंद्र के प्रकोप से बचाया था और देवराज के अहंकार को नष्ट किया था। भगवान कृष्ण ने अपनी सबसे छोटी उंगली से गोवर्धन पर्वत उठाया जाता है। तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा आरंभ हुई।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पूजा करने से व्यक्ति पर भगवान श्री कृष्ण की कृपा सदैव बनी रहती है। गोवर्धन पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाती है।
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त
तिथि- कार्तिक माह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा (15 नवंबर 2020)
गोवर्धन पूजा सायं काल मुहूर्त- दोपहर 3 बजकर 17 मिनट से शाम 5 बजकर 24 मिनट तक
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- सुबह 10:36 बजे से (15 नवंबर 2020)
प्रतिपदा तिथि समाप्त- सुबह 07:05 बजे तक (16 नवंबर 2020)
गोवर्धन पूजा की मान्यताएं
गोवर्धन पूजा का श्रेष्ठ समय प्रदोष काल में माना गया है। आज लोग अपने घरों में गाय के गोबर से गोबर्धन बनाते हैं। इसका खास महत्व होता है। गोबर्धन तैयार करने के बाद उसे फूलों से सजाया जाता है। शाम के समय इसकी पूजा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, दूध नैवेद्य, जल, फल, खील, बताशे आदि का इस्तेमाल किया जाता है।
कहा जाता है कि इस दिन मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन लोग घरों में प्रतीकात्मक तौर पर गोवर्धन बनाकर उसकी पूजा करते हैं और उसकी परिक्रमा करते हैं। व्यापारी लोग अपनी दुकानों, औजारों और बहीखातों की भी पूजा करते हैं। जिन लोगों का लौहे का काम होता है वो विशेषकर इस दिन पूजा करते हैं और इस दिन कोई काम नहीं करते हैं।
गोवर्धन पूजा विधि
-सुबह शरीर पर तेल मलकर स्नान करें।
-घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाएं।
-गोबर का गोवर्धन पर्वत बनाएं, पास में ग्वाल बाल, पेड़ पौधों की आकृति भी बनाएं।
-मध्य में भगवान कृष्ण की मूर्ति रख दें।
-इसके बाद भगवान कृष्ण, ग्वाल-बाल और गोवर्धन पर्वत का षोडशोपचार पूजन करें।
-पकवान और पंचामृत का भोग लगाएं।
-गोवर्धन पूजा की कथा सुनें और आखिर में प्रसाद वितरण करें।